गौरी एवं विषहारा पूजा के साथ नवविवाहिता का पर्व मधुश्रावणी आरंभ!

मधुबनी नवविवाहिताओं का पर्व मधुश्रावणी की गुरुवार को गौरी व बिषहारा पुजन के साथ आरंभ हुआ। मधुश्रावणी के आरंभ होते ही शिव पार्वती आधारित विभिन्न गीत से सुबह शाम सहर से लेकर गांव गुंजायमान हो रहा है। नवविवाहिताओं के द्वारा 15 दिनों तक चलने बाली मधुश्रावणी का व्रत पुरी पवित्रता व नियमनिष्ठा के किया जाता है। श्रावण मास के कृष्ण पक्ष चर्तूर्थी से आरंभ होकर शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को सपन्न होने वाला यह पर्व केवल मिथिला की नवविवाहित महिला ही करती हैं। इस वर्ष मधुश्रावणी पर्व 7 अगस्त को सम्पन्न होगी। एक पखवाड़ा तक चलने वाले इस विशेष पूजा की पंडित व कथा वाचक दोनों महिला ही रहती है। सुबह नवविवाहिता की ओर से गौरी पूजा की जाती है। वहीं, दोपहर में तेरह दिनो तक जानकार महिला पंडित से कथा सुनने के उपरांत शाम ढलने से पहले पुरी तरह से नवविवाहिता व उनके सखियां सज-धज कर फुल लोढने के लिए निकलती है। नवविवाहिता के साथ उनकी सहेलियां भी रहती है। जो गांव में विभिन्न तरह के परंपरागत एवं भगवती गीत गाते हुए निकालती है। नवविवाहित की इस टोली का एक साथ गीत गाते  निकलने से गांव की रौनक देखते ही बन रहा है।

क्या है पूजा की विधि
पूजा आरंभ करने से पहले एक कोबर घर की व्यवस्था की जाती है। जिसके एक कोने में कलश में अहिवातक वाती प्रज्ज्वलित किया जाता है। जहां मैना पत्ते पर हल्दी से बने गौड़ व मायके की सुपारी पर धान का लावा व दुध चढ़ाया जाता है। जहां बिसहरा व गौरी की सिन्दूर व लाल फुल से तो उजला पुष्प से चन्द्रमा की पूजा की जाती है। इस तेरह दिनो में नवविवाहिता मुख्य रूप से विहुला मनसा, मंगला गौरी, विषहारा, पृथ्वी जन्म, सीता की पवित्रता, उमा-पार्वती, गंगा- गौरी का जन्म, बाल बसंत, राजा श्री करक आदि की कथा सुनती है। वह ससुराल से आए हुए बस्तर धारण करती है और विना नमक के भोजन जो ससुराल से आए हुए सामानो से तैयार पकवान ग्रहण करती हैं। वही पुजा को लेकर प्रसाद भी नवविवाहिताओं के ससुराल से ही आती है।

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