मां वैष्णो देवी के संस्थापक ने बिहार में यहां की थी शक्तिपीठ की स्थापना, जानिए इसकी मान्यता

रिपोर्ट – शशिकांत मिश्रा लखीसराय :जिले के बड़हिया में एक सुप्रसिद्ध शक्ति पीठ स्थित है. जिसका रिश्ता जम्मू के कटरा स्थित मां वैष्णो देवी है. यह शक्ति पीठ मां बाला त्रिपुर सुंदरी मंदिर के नाम से विख्यात है. सफेद संगमरमर से निर्मित और 151 फीट ऊंचे गुंबज पर सुशोभित स्वर्ण कलश बरबस आपको अपना परिचय बताएगी. मंदिर ऐतिहासिक गाथाओं से लबरेज होने के साथ-साथ अनूठे मान्यताओं के लिए भी प्रसिद्ध है. जिले के साथ-साथ पूरे पूर्वांचल के लोगों के लिए यह शक्ति पीठ आस्था का बड़ा केंद्र बना हुआ है. जहां हजारों की संख्या में श्रद्धालू अपनी मुरादें लेकर आते हैं और माता का आशीर्वाद लेकर जाते हैं. यहां मंगलवार और शनिवार को पूजा करने का विशेष महत्व है. इसलिए यह दोनों दिन माता के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. पूरा मंदिर परिसर जय माता दी, शक्ति मंत्रों एवं घंटे की आवाज से गुंजायमान रहता है.

पंडित श्रीधर ओझा ने मां वैष्णो देवी को किया था स्थापित

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जम्मू के कटरा स्थित माता वैष्णो देवी मंदिर के संस्थापक पंडित श्रीधर ओझा बड़हिया के ही मूल निवासी थे. लोग बताते हैं कि पाल वंश के दौरान बड़हिया अस्तित्व में आया था. पंडित श्रीधर ओझा यहां से हिमालय की गुफाओं में तपस्या करने चले गए थे. जिस दौरान उन्होंने मां वैष्णो देवी मंदिर की स्थापना की. जिसके बाद पुनः वो अपने गांव लौट आए. यहां आने पर उन्होंने देखा कि यहां सर्पदंश से काफी लोगों की मौत हो रही है. उस समय बड़हिया के पूर्व में गंगा बहती थी. वहीं पश्चिम में हरूहर नदी बहती थी और बांकी पूरा मैदानी इलाका घने जंगलों से घिरा था.सर्पदंश से हो रही मौतें पंडित श्रीधर ओझा को झकझोर दिया था.

दो शर्तों पर माता त्रिपुर सुंदरी को किया गया था स्थापित

लगातार हो रही सर्पदंश की घटना के बादपंडित श्रीधर ओझा ने आराध्य देवी मां बाला त्रिपुर सुंदरी को पुकारा. जिसके बाद माता ने उन्हें गंगा में प्रज्वलित अग्नि के रूप में दर्शन दिए. भक्त श्रीधर ओझा ने माता को अपनी व्यथा सुनाई. जिसके बाद माँ ने उन्हें विष मुक्ति का मंत्र और उपाय बताया. तब से आज तक माता भक्त श्रीधर के आग्रह पर यहां विराजमान है. यहां चार मिट्टी के पिण्डियों में माता, त्रिपुर सुंदरी, महा काली, महा लक्ष्मी और महा सरस्वती के रूप में विराजती है. यहां के लोगों के मुताबिक माता यहां दो शर्तों के साथ स्थापित हुई थी. पहली कि वह सदैव गंगा के मिट्टी के पिंड में निवास करेगी. वहीं दूसरी शर्त को भक्त श्रीधर ओझा ने गंगा में जल समाधी लेकर पूरा किया था.

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