सूर्य का मेष राशि में प्रवेश, रहे सतर्क मेष संक्रान्ति में सूर्य की किरणें होंगी तीखी थोड़ी लापरवाही भी पड़ सकती है भारी सूर्योपासना का महत्वपूर्ण समय है मेष संक्रान्ति

बड़हिया

शुक्रवार की शाम पांच बजे के बाद सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ ही मेष संक्रान्ति प्रारंभ हो जाएगी जिसके फलस्वरूप सूर्य की गर्मी ज्यादा प्रखर होगी ऐसे में स्वास्थ्य के प्रति तनिक भी लापरवाही के गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। मेष राशि में सूर्य कुल 30 दिन रहेगें। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मेष राशि सूर्य की उच्च के होते हैं यह समय सूर्य की उपासना व शक्ति संचयन के लिए काफी महत्वपूर्ण है। उक्त बातें बड़हिया वार्ड नंबर 24 चुहरचक स्थित प्रतिभा चयन एकता मंच के मुख्यालय में संस्कृत शिक्षक सह ज्योतिष के जानकार पीयूष कुमार झा ने कही ।श्री झा ने कहा कि मेष संक्रान्ति के साथ ही सौर नववर्ष प्रारंभ होता है तथा सूर्य अपनी उच्च राशि मेषमें प्रवेश करते हैं। यह समय धार्मिक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सूर्योपासना का महत्वपूर्ण समय है। इस समय सूर्योदय से पूर्व उठकर प्रातः काल में सूर्य की किरणों का सेवन तथा सूर्य नमस्कार व्यायाम व सूर्यभेदी प्राणायाम करने से मनुष्य सालों भर नीरोग रह सकता है। दूसरे अर्थों में यह समय सूर्य की शक्ति को अपने अंदर संग्रहीत करने का महत्वपूर्ण काल है।इस काल में सूर्य की गर्मी लगातार बढ़नी शुरू हो जाएगी। ज्योतिषशास्त्र में जिनकी कुण्डली में सूर्य नीच का है या जो लोग बार बार बीमार रहते हैं उनके लिए यह समय रामबाण की तरह है। इस अवधि में देशी गाय के घी को आक की लकड़ी में मिलाकर यज्ञ में आहुति देने से नकारात्मक ऊर्जा का ह्रास होता है तथा सकारात्मक उर्जा का विकास होता है। इस अवधि में सूर्य को प्रातः काल में जल अर्पण करना, अड़हुल फूल से सूर्य का ध्यान करना शरीर एवं मन को स्वस्थ एवं‌ नीरोग रखता है। सूर्य प्राकृतिक जगत में उर्जा का सबसे बड़ा स्त्रोत है जिससे शक्ति संग्रह का काम करना चाहिए ।इस अवधि में भूलकर भी सूर्य की ओर लघुशंका नहीं करना चाहिए। इस अवधि में नमक का सेवन नहीं करने से चर्मरोग एवं नेत्ररोग से छुटकारा पाया जा सकता है। मेष संक्रान्ति में भगवान सूर्य की प्रसन्नता हेतु नित्य सूर्यनमस्कार तथा सूर्य भेदी प्रणायाम के साथ साथ आक के पौधे को घर के आंगन में लगाना चाहिए। पेट व शरीर को शीतल रखने के लिए मेष संक्रान्ति से सिंह संक्रान्ति तक एक समय सत्तू खाने की प्राचीन परंपरा संपूर्ण उत्तर भारत में थी। इसलिए मेष संक्रान्ति को मिथिला परंपरा में सतुआइन भी कहा जाता है।इस अवधि में खट्टे व तीखे भोजन से परहेज़ करना चाहिए। मेष संक्रान्ति में सूर्य की शक्ति का सकारात्मक उपयोग कर स्वयं को स्वस्थ एवं‌ नीरोग रखना चाहिए।

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें

विज्ञापन बॉक्स (विज्ञापन देने के लिए संपर्क करें)


स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे
Donate Now
               
हमारे  नए ऐप से अपने फोन पर पाएं रियल टाइम अलर्ट , और सभी खबरें डाउनलोड करें
डाउनलोड करें

जवाब जरूर दे 

क्या आप मानते हैं कि कुछ संगठन अपने फायदे के लिए बंद आयोजित कर देश का नुकसान करते हैं?

View Results

Loading ... Loading ...


Related Articles

Back to top button
Close
Website Design By Bootalpha.com +91 84482 65129